संस्मरण >> नर्मदे हर नर्मदे हरराजेश कुमार व्यास
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यात्रा सिर्फ वही नहीं होती जो हम भौतिक रूप में करते हैं। किसी स्थान की यात्रा वहाँ के इतिहास, वहाँ की संस्कृति की भी यात्रा होती है। यात्राएँ अकसर जितनी बाहर होती हैं उतनी ही भीतर भी होती हैं। भीतर की यात्राएँ बाहर की यात्राओं को समझने में मदद करती हैं। अकसर सामान्य यात्राएँ अलिखित रह जाती हैं, लेकिन किसी भावक या साधक की यात्राएँ इतिहास का दस्तावेज हो जाती हैं। ह्वेन सांग, इब्न बतूता, राहुल सांकृत्यायन की यात्राएँ ऐसी ही यात्राएँ रही हैं।
प्रस्तुत पुस्तक लेखक का मात्र एक यात्रा वृत्तांत या संस्मरण ही नहीं, वर्तमान के साथ इतिहास, संस्कृति, परंपरा और उस भूगोल विशेष के साथ जीना भी है। लेखक की कलम ऐसी है कि वह सुप्त इतिहास को वाचाल कर देती है, धीरे बहती नदी में तरंग ला देती है, पत्थरों को लिखकर उसे जीवंत बना देती है। यहाँ पत्थर इतिहास बाँचता है, नदियाँ गीत गाती हैं। लेखक की भाषा नदी की तरह सतत प्रवहमान भाषा है और स्फटिक की भाँति निर्मल, प्रांजल एवं पारदर्शी भी। पाठक इस संस्मरण को पढ़ते हुए अपने भीतर एक साथ अनेक मौसम को अनुभूत करता है, जीने लगता है। विवरण में खजुराहो की मूर्तियाँ हों या तानसेन का मकबरा, हरिद्वार में गंगा की कलकल हो या अमरकंटक में नर्मदा की अठखेलियाँ, ये सब अपने भावक को उस भावलोक में ले जाती हैं जहाँ से लौटने का मन नहीं करता। एक सुंदर यात्रा-लेख यही करता है, इस पुस्तक में यही हुआ है।
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